आज की हमारी डिजिटल दुनिया….मोबाइल फ़ोन
दीपेंद्र सिंह (संपादक)
सुबह होते ही आंख भले पूरी तरह से ना खुली हो ,भले नींद पूरी हुई न हो दिमाग और हाथ मोबाइल ढूंढने लगता है…
ऐसा क्या है इसमें?
आपकी पूरी दुनिया जैसे इसी में सिमट के रह गई है ..
पहले की तरह आंख मलते उठ कर उगते सूरज की किरणें देखना जैसे भूल से गए हैं हम ,पास सो रहे अपनों को एक बार प्यार से गले लगाना भूल गए हैं हम।
सच में पहले की तरह उठ कर इस खूबसूरत दुनिया को चिड़ियों की चहचहाहट की गूंज में जी भर के देखना भूल गए हैं हम..
चाय के कप के साथ दो पति पत्नी दुनिया भर की चर्चा और घर की परेशानियों को हल करना भूल गए हैं अब आगे पीछे घूमते घर के हर सदस्य के हाथ में मोबाइल और तो और जिन हाथों में खिलौना होना चाहिए , किताब होनी चाहिए उन कोमल हाथों ने भी मोबाइल को अपना खिलौना और किताब बना लिया है।
मोबाइल की उपयोगिता भले, संचार, जानकारी, शिक्षा और बैंकिंग व अन्य के लिए है पर लोग सबसे ज्यादा इसे मनोरंजन और दिल बहलाने का माध्यम वो भी जरूरत से ज्यादा बना लिया है।
लोग जितनी इसकी उपयोगिता का लाभ ले रहे उससे कहीं ज्यादा बेपरवाह हैं इससे शरीर , दिमाग और आंखों पर पड़ रहे खतरों से। समय की बरबादी बैठ कर घंटों मोबाइल में कुछ करते रहना फिजिकल एक्टिविटी को कम करके आपको सुस्त बना ही देता है। मोबाइल की रेडिएशन का असर जिससे मस्तिष्क की कोशिकाएं नष्ट होती है उस पर किसका ध्यान ही नहीं जाता कभी।
मोबाइल ने लोगों में गोपनीयता की कमी भी पैदा कर दी है ,और तो और अनचाहा सिर दर्द,तनाव और हृदय रोग से जुड़ी समस्याएं भी मोबाइल की ही देन है।
इसका कोई इलाज नहीं … एक दिन ये कैंसर से भी भयानक की तरह एक आम बीमारी होगी या शायद हो चुकी है जिसके नुकसान की भरपाई वर्तमान मे शायद ही कोई दवा कर सकती है या भविष्य कर पाये।
#डिजिटल_इंडिया✍️✍️✍️
डॉक्टर शक्तिधर बाजपेई
ज्ञानचन्द्र नेचर केयर
गंगोत्री पैरामेडिकल इंस्टीट्यूट