गुरु गोविन्द सिंह जी को ज्योति ज्योत दिवस पर कोटि-कोटि नमन।
दीपेंद्र सिंह (संपादक)
धर्म और मानवता की रक्षा के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित करने वाले महान धर्म-योद्धा, खालसा पंथ के संस्थापक श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज के पावन ज्योति ज्योत दिवस पर उन्हें कोटि-कोटि नमन। धर्म संस्कृति और मानवता की रक्षा को समर्पित उनका संपूर्ण जीवन मानव सभ्यता के लिए अनमोल है।मुगलों के साथ लोहा लेने वाले सिखों के दसवें गुरु और खालसा पंथ के संस्थापक श्री गुरु गोविन्द सिंह जी अपनी वीरता और बहादुरी के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने धर्म की राह पर खुद के साथ-साथ अपने परिवार को भी हंसते-हंसते कुर्बान कर दिया।
श्री गुरु गोविन्द सिंह का जन्म पटना में 22 दिसम्बर 1666 को नौवें सिख गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी और माता गुजरी के घर हुआ था। उनके बचपन का नाम गोविन्द राय था। पटना में जिस घर में उनका जन्म हुआ था और जहां उन्होने शुरू के चार वर्ष बिताये वहीं पर अब तख्त श्री हरिमंदर जी या पटना साहिब स्थित है। चार साल के बाद सन् 1670 में उनका परिवार पंजाब में हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों में स्थित चक्क नानकी नामक स्थान पर आकर बस गया। चक्क नानकी ही आजकल आनन्दपुर साहिब के नाम से जाना जाता है। यहीं पर उनकी शिक्षा-दीक्षा हुई। उन्होंने फारसी और संस्कृत की शिक्षा ली तो वहीं एक योद्धा बनने के लिए सैन्य कौशल भी सीखा। इस दौरान गोविन्द राय जी लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान इंसानियत निडरता और बहादुरी का भी संदेश देते थे।
8 मई 1705 में पंजाब के ‘मुक्तसर’ में उनका मुगलों से भयानक युद्ध हुआ जिसमें गुरुजी की जीत हुई। अक्टूबर 1706 में गुरुजी दक्षिण की तरफ गए जहाँ उन्हें औरंगजेब की मृत्यु की खबर मिली। औरंगजेब की मृत्यु के बाद उन्होंने बहादुरशाह जफर को बादशाह बनाने में मदद की। गुरुजी व बहादुरशाह के संबंध अत्यंत मधुर थे जिसे देखकर सरहद का नवाब वजीत खाँ घबरा गया। उसने दो पठान गुरुजी के पीछे लगा दिए। इन पठानों ने गुरुजी पर धोखे से जानलेवा हमला कर दिया जिसके चलते गुरु गोबिन्द सिंह जी नांदेड साहिब में ज्योति-ज्योत समा गए।