रायबरेली में नमक सत्याग्रह

रायबरेली में नमक सत्याग्रह

डॉक्टर जितेंद्र सिंह 


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भोजन में शामिल विभिन्न तत्वों में नमक का महत्वपूर्ण स्थान है।इसके बिना भोजन का स्वाद फीका रहता है।

प्राचीन विश्व इतिहास में नमक के व्यापार एवं नमक पर लगने वाले कर का उल्लेख है। इतिहास में अनेक राजवंशों का विवरण है जिन्होंने नमक एवं उसके व्यापार पर कर लगाया है।

विश्व में सर्वप्रथम चीन में नमक कर लगाने का उल्लेख प्राप्त होता है।300 ईसा पूर्व में में लिखी गई पुस्तक “ग्वांजी” में नमक कर लगाने का उल्लेख प्राप्त होता है। इसका अनुसरण चीन के शासकों ने किया।

एक समय वहां नमक कर चीन राजस्व का आधा था और उसने चीन की दीवार के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मौर्य शासक चंद्रगुप्त मौर्य के नमक का चौथाई हिस्सा कर के रूप में लिया जाता था।

मुगलों के समय मुसलमानों से 2.5% तथा हिन्दुओं से 5%नमक कर लिया जाता था। जर्मन विद्वान एम.जे.स्लेडन ने अपनी पुस्तक “साल्ज” में लिखा है कि नमक कर एवं तानाशाही में सीधा संबंध है।

ब्रिटिश काल में नमक कर नीति में समयानुकूल परिवर्तन होता रहा है।1759 ईस्वी में ब्रिटिशों ने नमक के परिवहन पर भी कर लगा दिया था।

7 अक्टूबर 1767 ईस्वी को नमक कंपनी के एकाधिकार को समाप्त कर दिया।1772 ईस्वी ब्रिटिश गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने नमक कर को पुनः कंपनी के अंतर्गत कर दिया,इसके लिए उसने एजेंट भी नियुक्त किए।

1788 ईस्वी में नमक थोक विक्रेताओं को नीलामी लगाकर दिया जाने लगा। इससे नमक के दामों में वृद्धि की,जो ₹1 से बढ़कर ₹4 हो गई।जो अत्यंत कष्टप्रद स्थिति थी जिसमें केवल कुछ लोग ही नमक के साथ भोजन करने में समर्थ थे, शेष लोगों को बिना नमक के भोजन करना पड़ता था।

1835 ईस्वी के नमक कर आयोग ने अनुशंसा किया कि नमक के आयात को प्रोत्साहित करने के लिए नमक पर कर लगाया जाना चाहिए।बाद में नमक उत्पादन को अपराध बनाया गया।

1882 ईस्वी में बने भारतीय नमक कानून ने सरकार को पुनः एकाधिकार स्थापित करा दिया।

1923 ईस्वी में लार्ड रीडिंग के कार्यकाल में नमक कर को दुगना करने का विधेयक पास किया गया।1927 ईस्वी में पुनः विधेयक लाया गया उस पर वीटो लग गया।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व जब गांधी जी ने संभाला तो उन्होंने 1930 ईस्वी में सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने का निश्चय किया इससे पूर्व गांधी जी ने अपने समाचार पत्र “यंग इंडिया” के 30 जनवरी 1930 ईस्वी में प्रकाशित लेख एवं 2 मार्च 1930 ईस्वी में लिखे पत्र में उन्होंने 11 सूत्री मांगे प्रस्तुत की, जिसमें नमक कर समाप्त करने के लिए कहा गया। 2 मार्च 1930 ईस्वी को लिखे एक पत्र में गांधीजी लिखते हैं –राजनीतिक दृष्टि से हमारी स्थिति गुलामी से अच्छी नहीं है, हमारी संस्कृति की जड़ ही खोखली कर दी गई है। हमारा हथियार छीनकर हमारे संपूर्ण का अपहरण कर लिया गया है।

पत्र में वह आगे लिखते है, इस पत्र का हेतु कोई धमकी देना नहीं है,यह तो सत्याग्रह का साधारण और पवित्र कर्तव्य मात्र है।” लार्ड इरविन ने गांधी जी के पत्र को कोई विशेष महत्व नहीं दिया। इससे गांधी जी काफी दुखी हुए और कहा-मैंने रोटी मांगी थी बदले में मुझे पत्थर मिला।

विवश होकर गांधी जी को 12 मार्च 1930 ईस्वी को सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करना पड़ा। इस आंदोलन का प्रारंभ दांडी मार्च से हुआ।

महात्मा गांधी जी ने साबरमती आश्रम से अपने 78 सहयोगियों के साथ यात्रा प्रारंभ की और गांव-गांव होते हुए 24 दिनों में 385 किलोमीटर की यात्रा करके 5 अप्रैल 1930 ईस्वी को गुजरात के नवसारी जिले के दांडी नामक गांव पहुंचे एवं 6 अप्रैल को वहीं के समुद्र तट पर एक मुट्ठी भर नमक हाथ में लेकर नमक कानून तोड़ दिया। गांधी जी को हिरासत में ले लिया गया। धीरे -धीरे यह आंदोलन सम्पूर्ण भारत में फ़ैल गया।।

रायबरेली में भी नमक सत्याग्रह का प्रसार हुआ। रायबरेली में हुए किसान आंदोलन के दौरान लोगों के जोश एवं जज्बे से गांधी जी काफी प्रभावित थे।किसानों ने जिस प्रकार आंदोलन किया उसने देश के राजनीतिक नेतृत्व को सकारात्मक संदेश दिया था।

ऊंचाहार के पट्टी रहस कैथवल गांव में नमक आंदोलन की नींव रखी गई थी। 7 जनवरी 1921ईस्वी को मुंशीगंज गोलीकांड के बाद से ही महात्मा गांधी स्थानीय कांग्रेस के नेताओं के सीधे संपर्क में थे ।

कई बार उन्होंने पंडित जवाहरलाल नेहरू को रायबरेली भेजकर किसानों और नेताओं से संवाद स्थापित करने को कहा था। 13 नवंबर 1929 ई को गांधी जी स्वयं बछरावां आए थे ।

जहां तत्कालीन कांग्रेस के जिला अध्यक्ष माता प्रसाद मिश्र व मुंशी चंद्रिका प्रसाद ने उनका स्वागत किया था । गांधी जी ने कुर्री सिदौली में रात्रि विश्राम किया एवं अगले दिन लालगंज पहुंचे वहां की जनता ने गांधी जी का अभूतपूर्व स्वागत किया ।

लालगंज में आयोजित विशाल जनसभा में लगभग 80 हजार लोगों की सहभागिता रही इस जनसभा में गांधी जी के साथ उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी भी आई थी। आजादी की लड़ाई में कोई आर्थिक कमी न होने पाए, इसके लिए कस्तूरबा जी को यहां की महिलाओं ने अपने आभूषण दिए थे एवं ग्रामीणों ने 1857 ई की क्रांति की स्मृति में बापू को 1857 रुपए की थैली प्रदान की थी ।

गांधी जी के बैसवारा एवं रायबरेली प्रेम के कारण ही नमक आंदोलन, स्वराज आंदोलन , झंडा सत्याग्रह समेत एक दर्जन शीर्ष आंदोलन को यहां से गति प्राप्त हुई । ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 ई को नमक सत्याग्रह प्रारंभ करने की घोषणा प्रारंभ कर दी । संयुक्त प्रांत में सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रभारी गणेश शंकर विद्यार्थी के नेतृत्व में एक समिति का गठन हुआ । महात्मा गांधी के निर्देश पर जवाहरलाल नेहरू ने इसकी शुरुआत रायबरेली से करने को कहा । इस अवसर पर जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि “रायबरेली में अंगद हनुमान और सुग्रीव जैसे कार्यकर्ता है जो घड़ी भर की सूचना पर जान हथेली पर रखकर निकल पड़ते हैं।”गांधी जी ने स्वयं इस संबंध में एक पत्र लिखकर रायबरेली के शिवगढ़ निवासी एवं साबरमती आश्रम में रहने वाले बाबू शीतला सहाय को भेजा इस पत्र में उन्होंने नमक सत्याग्रह की कमान कालाकांकर के कुंवर सुरेश सिंह को प्रदान करते हुए यह निर्देश दिया था कि वे अपने कार्यकर्ताओं के साथ तुरंत रायबरेली पहुंचे । नमक सत्याग्रह की शुरुआत संयुक्त प्रांत में प्रभावी हो, इसके लिए गांधी जी ने जवाहरलाल नेहरू को 30 मार्च 1930 ई को रायबरेली भेजा ,और तैयारी का जायजा लिया । नेहरू जी इससे बहुत संतुष्ट हुए और उन्होंने गांधी जी को संपूर्ण विवरण भेजा ।‌ 8 अप्रैल 1930 ई को रफी अहमद किदवई ,मोहनलाल सक्सेना, कुंवर सुरेश सिंह सहित हजारों कार्यकर्ताओं ने डलमऊ पहुंचकर नमक बनाने की कोशिश की ,लेकिन पुलिस को इसकी भनक लग गई फल स्वरुप यह प्रयास पूर्ण रूप से सफल नहीं हुआ।
डलमऊ के अतिरिक्त एक अन्य टीम रायबरेली के तिलक भवन में भी नमक बनाने की कोशिश में थी। 8 अप्रैल 1930 ई को ही पंडित मोती लाल नेहरू, कमला नेहरू, विजय लक्ष्मी पंडित, इंदिरा गांधी सहित अनेक कार्यकर्ता तिलक भवन में मौजूद थे। एक विशाल जुलूस के साथ मुंशी सत्यनारायण पहुंचे। इसके पश्चात नारेबाजी एवं जयकारों के बीच एक तोला नमक बनाया गया जिसे मोतीलाल नेहरू ने वहीं नीलाम भी कर दिया जिसे 51 रुपए में मेहरचंद खत्री ने खरीदा था बाद में पुलिस ने कई लोगों को गिरफ्तार कर लिया । इस प्रकार यह आंदोलन पूर्ण रूप से सफल हुआ जिसका प्रसार रायबरेली से ही संपूर्ण संयुक्त प्रांत में हुआ । इस आंदोलन ने राष्ट्रवादी चेतना जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

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